Best Small Spiritual Hindi Story With Moral

Spiritual Hindi Story With Moral

एक भिखारी जंगल में भटक रहा था। उसे बहोत भूख लगी थी ।

इसलिये वह बिचारा लड़खड़ाता हुआ एक नगरमें आ पहुचा ।

वहा जाकर उसने भोजन के लिये अनेक प्रकारकी आजिजी की।

उसकी गिड़गिड़ाहट से उस गुहपति की स्त्रीने घरमें से बचा हुआ मिष्टान्न लाकर
उसे दिया।

ऐसा भोजन मिलने से भिखारी बहोत आनंदित होता हुआ नगर के बहार आया, आकर एक वृक्ष के नीचे बैठा।

वहाँ थोड़ी सफाई करके उसने एक ओर अपना बहुत पूराना पानी का घड़ा रख दिया, एक ओर अपनी फटीपुरानी मलिन चादर रखी और फिर एक ओर वह स्वयं उस भोजन को लेकर बैठा।

खुशी-खुशीसे उसने कभी न देखे हुए भोजन को खाकर पूरा किया और वही पर लेट गया।

भोजन के मदसे जरासी देरमें उसकी आँखें मिच गयीं। वह निद्रावश हुआ कि इतने में उसे एक स्वप्न आया।

स्वप्न में वह एक बड़े राज्य का राजा था, उसने सुन्दर वस्त्राभूषण धारण किये हैं, सारे देशमें उसकी विजय का डंका बज गया है, समीपमें उसकी आज्ञाका पालन करनेके लिये अनुचर खड़े हैं,

एक उत्तम महालयमें सून्दर पलंग पर उसने शयन किया है, देवांगना जैसी स्त्रियाँ उसकी सेवा कर रही हैं, एक ओरसे सेवक पंखेसे पवन फेक रहा हे।

स्वप्ना-वस्था में वह मानो स्वयं सचमुच वैसा सुख भोग रहा है ऐसा वह मानने
लगा।

इतने में सूर्यदेव बादलों से ढंक गया, बिजली कड़कने लगी, मेघ महाराज चढ़ आये, सर्वत्र अँधेरा छा गया, मुसलधार वर्षा होगी ऐसा दृश्य हो गया, और बिजलीका एक प्रबल कड़ाका हुआ ।

कड़ाके की प्रबल आवाज से भयभीत हो वह भिखारी शीघ्र जाग उठा।

जागकर देखता है तो न है वहॉँ राज्य कि न है वहां अनुचर, न है वहॉँ सुन्दर वस्त्र कि न है वहां सुन्दर पलंग, न है वहॉँ देवांगना जैसी स्त्रियाँ कि न है वहां सेवक।

देखता है तो जिस जगह पानी का पुराना घड़ा पड़ा था उसी जगह वह पड़ा है, जिस जगह फटीपुरानी मलिन चादर पड़ी थी उसी जगह वह फटी-पुरानी चादर पड़ी है।

महाशय तो जैसे थे वेसे के वेसे दिखायी दिये। जैसे मलिन वस्त्र पहन रखे थे वैसे के वेसे वही वस्त्र शरीर पर थे। न तिलभर घटा कि न रकत्तीभर बढ़ा।

यह देखकर वह अति शोक को प्राप्त हुआ। “स्वप्न में जिस सुख का मैने आनन्द माना, उस सुखमें से तो यहाँ कुछ भी नहीं है। अरे रे ! मैंने स्वप्न के भोग तो भोगे नहीं और मुझे मिथ्या खेदः प्राप्त हुआ ।

इस प्रकार वह बिचारा भिखारी ग्लानि में आ पड़ा ।

Moral of the story

जैसे स्वप्न से जागते ही उस भिखारी को वह सुख मिथ्या प्रतीत हुआ, वेसे ही तत्त्वज्ञान रूपी जागृति से संसारके सुख मिथ्या प्रतीत होते हैं ।

जैसे स्वप्नकी एक भी वस्तुका सत्यत्व नहीं है, वैसे संसारकी एक भी वस्तुका सत्यत्व नहीं है। दोनों चपल और शोकमय हैं । ऐसा विचार करके बुद्धिमान पुरुष आत्मतत्त्व को खोजते हैं ।

इस स्टोरी से हमें यह बोध मिलता हे की जैसे नींद में जब स्वप्न चल रहा होता हे तब हमें वह सच मालूम पड़ता हे लेकिन जैसे ही हम नींद से जागते हे हमें पता चलता हे की नींद में स्वप्न में जो भी आया वह सब एक भ्रम था , झूठ था , मिथ्या थ।
हमारा जीवन भी एक स्वप्न की भांति ही हे, हमारे जीवन में अच्छी बुरी परिस्थितियां आती जाती रहती हे और उसके कारण हम सुखी या दुखी होते रहते हे हमें पता ही नहीं हे की इस महा स्वप्न से जागना कैसे हे। इस महा स्वप्न से जागने को ही आत्मज्ञान कहते हे और आत्म ज्ञान होते ही हमें पुरे संसार का स्वरुप समझ में आ जाता हे और आप ईश्वरीय शक्ति के साथ एक हो जाते हो उसके बाद बहार में चाहे जो कुछ भी हो रहा हो लेकिन आप हमेशा खुश रहोग। हमारा जीवन का उद्देश्य ही ये हे की हम उस परम आनंद को प्राप्त करे। हमारे जीवन का लक्ष्य केवल यही होना चाहिए की हम इसी जीवन में ईश्वर की अनुभूति कर। क्योकि इसी में मनुष्य जीवन की सार्थकता हे।

इन सभी वस्तुओं का सम्बन्ध क्षणभर का है, इनमें बँधकर क्या प्रसन्न होना ? यह सब चपल एवं विनाशी हैं, तू अखंड एवं अविनाशी है, इसलिये अपने जैसी नित्य वस्तुको प्राप्त कर !

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